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vichar chandrodaya

29 Mar 2022 01:57


29 Mar 2022 01:57
Jyoti Tirkey
New Member
29 Mar 2022 01:57

अथ द्वितीयकलाप्रारंभः ॥ २ ॥ || प्रपंचारोपापवाद ॥

॥ मनहर छंद ।। प्रपंचारोपापवाद करि निष्प्रपंच वस्तु ब्रह्मजानिके अवस्तु – मायादिक भानिये ॥ ब्रह्म माया संबंध रु जीवईश भेद तिन । पट् ये अनादि तामैं ब्रह्मानंत मानिये ॥ वस्तुमैं अवस्तु कर कथन आरोप बाधि अवस्तु वस्तुकथन अपवाद गानिये || गुरुके प्रसाद यह युक्ति जानि पीतांबर । तैंज तमका रज आरज निज जानिये ॥ २ ॥ ॥ ३३ ॥ अन्वयः—अवस्तु वाधि वस्तुकथन अपवाद

जानिये ॥ ॥ ३४ ॥ अन्वयः हे आरज कहिये विवेकी तमका रज तज । निज ( स्वरूप ) जानिये ॥


22 Feb 2023 09:07
Sachin Nautiyal
New Member
22 Feb 2023 09:07

hello