रस (rasa) का अंग्रेजी अर्थ
रस के अंग्रेजी अर्थ
संज्ञा
- juice(पु∘)+3liquid(पु∘)zest(पु∘)beverage(पु∘)delicacy(पु∘)humour(पु∘)sap(पु∘)flavour(पु∘)nectar(पु∘)blood(पु∘)प्रायोजित कड़ी - हटाएं
रस की परिभाषाएं और अर्थ हिन्दी में
रस NOUN
- आनंदस्वरूप व्रह्म । (उपनिपद्) ।
- घोडो़ और हाथियों का एक रोग जिसमें उनके पैरों में से जहरीला पानी बहता है ।
- वीर्य ।
- राग ।
- विष । जहर ।
- पारा ।
- हिंगुल शिंगरफ ।
- वैद्यक में घातुओं को फूँककर तैयार किया हुआ भस्म, जिसका व्यवहार औषध के रूप में होता है । जैसे,—रससिंदुर ।
- पहले खिंचाव का शोरा जो बहुत तेज और अच्छा होता है ।
- लासा । लूआब ।
- केशव के अनुसार रगण और सगण ।
- बोल नामक गंघद्रव्य ।
- एक प्रकार की भेड़ जो गिलगित (गिलगिट) से उत्तर और पमीर मे पाई जाती है ।
- भाँति । तरह । प्रकार । रूप ।
- मन की तरंग । मौज इच्छा ।
- सोना ।
- दुध । जैसे—गोरस ।
- गुण । सिफत ।
- छह की संख्या ।
- किसी पदार्थ का सार । तत्व ।
- साहित्य में वह आनंदात्मक चित्तवृत्ति या अनुभव विभाव, अनुभाव और संचारी से युक्त किसी स्थायी भाव के व्यंजित होने से उत्पन्न होता है । मन में उत्पन्न होनेवाला वह भाव या आनंद जो काव्य पढने अथवा अभिनय देखने से उत्पन्न होता है । विशेष— हमारे यहाँ आचार्यों में इस विषय में बहुत मतभेद है कि रस किसमें तथा कैसे अभिव्यक्त होता है । कुछ लोगोँ का मत है कि स्थायी भावों की वस्ताविक अभिव्यक्त मुख्य रूप से उन लोगों में होती है, जिनके कार्यों का अभिनय किया जाता है । (जैसे,—राम, कृष्ण, हरिश्चंद्र आदि) और गौण रूप से अभिनय करनेवाला नटों, में होता है । अतः इन्हीं में ये लोग रस की स्थिति मानते है । ऐसे आचार्यों का मत है कि अभिनय देखनेवालों या काव्य पढनेवालों के साथ रस का कोई संबंध नहीं है । इसके विपरीत अधिक लोगों का यह मत है कि अभिनय देखनेवालों तथा काव्य पढनेवालों में ही रस की अभिव्यक्ति होती है । ऐसे लोगों का कथन है कि मनुष्य के अंतःकरण में भाव पहले से ही विद्यमान रहते है; और काव्य पढने अथवा नाटक देखने के समय वही भाव उद्दीप्त होकर रस का रूप धारण कर लेते है । और यही मत ठीक माना जाता है । तात्पर्य यह कि पाठकों या दर्शकों को काव्यों अथवा अभिनयों से जो अनिर्वचनीय और लोकोत्तर आनंद प्राप्त होता है, साहित्य शास्त्र के अनुसार वही रस कहलाता है । हमारे यहा रति, हास, शोक, उत्साह, भय, जुगुप्सा, आश्चर्य और निर्वेद इन नौ स्थायी भावों के अनुसार नौ रस माने गए है; जिनके नाम इस प्रकार है । —श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अदभुत और शांत । द्दश्य काव्य के आचार्य शांत को रस नहीं मानते । वे कहते है कि यह तो मन की स्वाभाविक भावशून्य अवस्था है । निर्वेद मन का कोई विकार नहीं है । अतःवे रसों की संख्या आठ ही मानते है । और कुछ लोग इन नौ रसों के सिवा एक और दसवाँ रस 'वात्सल्य' भी मानते है ।
- नौ की संख्या ।
- सुख का अनुभव । आनंद । मजा ।
- प्रेम । प्रिति । मुहब्बत ।
- कामक्रीड़ा । केलि । बिहार ।
- उमंग । जोश । वेग ।
- वह अनुभव जो मुँह में डाले हुए पदार्थों का रसना या जीभ के द्बारा होता है । खाने की चीज का स्वाद । रसनेंद्रिय का संवेदन या ज्ञान । विशेष—हमारे यहाँ वैद्यक में मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त और कषाय ये छह रस माने गए है और इसकी उत्पत्ति भूमि, आकाश, वायु और अग्नि आदि के संयोग से जल में मानी गई है । जैसे—पृथ्वी ओर जल के गुण की अधिकता से मधुर रस, पृथ्वी और अग्नि के गुण की अधिकता से अम्ल रस, जल और अग्नि के गुण की अधिकता से तिक्त रस और पृथ्वी तथा वायु की अधिकता से कषाय रस उत्पन्न होता है । इन छहों रसों के मिश्रण से और छत्तीस प्रकार के रस उत्पन्न होते है । जैसे,—मधुराम्ल, मधुरतिक्त, अम्ललवण, अम्लकटु, लवणकटु, लवणतिक्त, कटुतिक्त, तिक्तकषाय आदि । भिन्न भिन्न रसों के भिन्न भिन्न गुण कहे गए हैं । जैसें,—मधुर रस के सेवन से रक्त, मांस, मेद, अस्थि और शुक्र आदि की वृद्धि होती है; अम्ल रस जारक और पाचक माना गया है; लवण रस पाचक और संशोधक माना गया है; कटु रस पाचक, रेचक, अग्नि दीपक और संशोधक माना गया है; तिक्त रस रूचिकर और दिप्तिवर्धक माना गया है; ओर कपाय रस संग्राहक और मल, मूत्र तथा श्लेष्मा आदि को रोकनेवाला माना गया है । न्याय दर्शन के अनुसार रस नित्य और अनित्य दो प्रकार काहोता है । परमाणु रूप रस नित्य और रसना द्बारा गृहीत होनेवाला रस अनित्य कहा गया है ।
- किसी विषय का आनंद ।
- कोई तरल या द्रव पदार्थ ।
- जल । पानी ।
- वनस्पतियों या फलों आदि में का वह जलीय अंश जो उन्हें कूटने, दबाने या निचोंड़ने आदि से निकलता है । जैसे,—ऊख का रस, आम का रस, तुलसी का रस अदरक का रस ।
- शोरबा । जूस । रसा ।
- वह पानी जिसमें मीठा या चीनी घुली हुई हो । शरबत
- वृक्ष का निर्यास । जैसे,—गोंद, दुघ, मद आदि ।
प्रायोजित कड़ी - हटाएंरस के समानार्थक शब्द
विवरण
श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस के जिस भाव से यह अनुभूति होती है कि वह रस है, स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। प्राचीन काव्य-शास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या नौ है। आधुनिक काव्य-शास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या ग्यारह है।
विकिपीडिया पर "रस (काव्य शास्त्र)" भी देखें।रस
noun
रस का अंग्रेजी मतलब
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"रस" के बारे में
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